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Q) वक्फ से आप क्या समझते है? विधि मान्य वक्फ की आवश्यक शर्तो का उल्लेख किजिये।क्या वाकिफ वक्फ की आय को अपने लिए सुरक्षित कर सकता है?


A) वक्फ
वक्फ का शाब्दिक अर्थ है बांधना अथवा रोक रखना विधि शब्दावली में वक्फ का तात्पर्य संपत्ति की ऐसी व्यवस्था करने से है जिसमें संपत्ति हस्तांतरण होकर सदा के लिए बं जाती हो, ताकि इस से प्राप्त होने वाला लाभ धार्मिक तथा पुणे के कार्यों के लिए निरंतर प्राप्त होता रहे वक्फ संपत्ति से वाकिफ का अधिकार समाप्त होकर संपत्ति का स्वामित्व अल्लाह को अंतरित हो जाता है
कुरान में वक् से संबंधित नियमों का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है मुस्लिम विधि में इस शाखा का विकास पैगंबर की सुन्नत के आधार पर है इस संबंध में प्रथम सुन्नत का बुखारी में उल्लेख है खलीफा उमर अपनी किसी मूल्यवान संपत्ति का उपयोग सर्वाधिक पुण्यार्थ कार्य के लिए करना चाहते थे तो पैगंबर ने उन्हें सलाह देते हुए कहा संपत्ति को बांध दो तथा इसके लाभांश को मानव मात्र के लिए कल्याणकारी (खैरात) कार्यों के लिए समर्पित कर दो; और इस संपत्ति का ना तो विक्रय होगा ही यह दान अथवा उत्तराधिकार की विषय वस्तु बन सकती है
पैगंबर की सलाह मानते हुए खलीफा उमर ने उस संपत्ति को वक्फ कर दिया जो कई शताब्दियों तक विद्यमान रहा तब से लेकर आज तक वक्फ की परंपरा मुस्लिम समुदाय के धार्मिक तथा सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है भारत में ही वक्फ से संबंधित अचल संपत्तियों का अनुपात इतना अधिक हो गया है 1913 में मुसलमान वक्फ मान्यीकरण अधिनियम, 1913’ बनाना पड़ा इसकी प्रस्तावना के अनुसार वक्फों  की मान्यता के संबंध में उत्पन्न संदेहो को दूर करने के लिए यह अधिनियम निर्मित किया गया है इस की धारा 2(1) में वक्फ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है धारा 2(1) या धारा 2(अ) के अनुसार वक्फ का तात्पर्य इस्लाम धर्म में निष्ठा प्रकट करने वाले किसी व्यक्ति के द्वारा, मुस्लिम विधि द्वारा धार्मिक, नेक और खैरात माने जाने वाले किसी प्रयोजन के लिए किसी संपत्ति का स्थाई समर्पण है
1913 के अधिनियम में मात्र 5 धाराएं हैं इस अधिनियम को भूतलक्षी प्रभाव देने के लिए 25 जुलाई 1930 को मुसलमान वक्फ मान्यीकर अधिनियम,1930’ पारित किया गया क्योंकि 1913 का अधिनियम उसके पहले के वक्फो पर लागू नहीं होता था। अब मुस्लिम वक्फ मान्यीकर अधिनियम, 1913  1913 के अधिनियम प्रारंभ होने से पहले किए गए वक्फों पर लागू समझा जाएगा परंतु यह कि,मे निहित कोई बात किसी तरह, किसी ऐसे अधिकार, स्वत्व, दायित्व या जिम्मेदारी पर, जो इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले अर्जित किया, उत्पन्न किया, या उठाया जा चुका हो,पर कोई प्रभाव नहीं उत्पन्न करेगी
विधि मान्य वक्फ की आवश्यक शर्तें
1)    किसी संपत्ति का स्थाई समर्पण-
a.            समर्पण का होना आवश्यक है
b.            समर्पण का स्थाई होना आवश्यक है
उच्चत्तम न्यायालय ने मोहम्मद इस्माइल बनाम ठाकुर साबिर अली ए आई आर 1962 एस सी के बाद में यह निर्णय किया कि मुसलमान वक्फ विधि मान्यकरण अधिनियम,1913 की धारा 2(1) में प्रयुक्त शब्द स्थाई समर्पण का तात्पर्य है कि वक़्त संपत्ति खुदा में सृजित है
अत: एक बार वक्फ का सृजन हो जाने के उपरांत इसका प्रतिसंहरण नहीं किया जा सकता जहां संस्थापक प्रतिसंहरण की शक्ति अपने पास रखता है वहां वक्फ प्रारंभ से शून्य माना जाता है हबीब अशरफ बनाम सैयद वजीहुद्दीन 1933 आईसी 654 के बाद में न्यायालय ने यह अवधारिट किया कि यदि किसी वक्फ में यह शर्त लगाई गई हो कि कुव्यवस्था होने पर वक्फ भंग हो जाएगा तथा संपत्ति वाकिफ के उत्तराधिकारी में बंट जाएगी, तो चूकिं वक्फ का विद्यमान रहना एक शर्त पर आधारित है अतः वक्फ शून्य माना जाएगात: वक्फ को शर्त रहित एवं अत्यंतिक होना चाहिए सशर्त एवं समाश्रित वक्फ शून्य होते हैं  
c.    संपत्ति का होना
समर्पण किसी संपत्ति का होना चाहिए| संपत्ति चल, अचल, मूर्त, अमूर्त कैसी भी हो सकती है|

2)    वाकिफ की क्षमता-
a.    व्यस्क तथा स्वस्थचित्त हो - 18 वर्ष या 21 वर्ष (यदि कोर्ट ऑफ वार्डस एक्ट में संरक्षक नियुक्त किया गया हो) अगर वाकिफ व्यस्क ना हो तो वक्फ शून्य होगा
b.    गैर मुस्लिम भी वक्फ कर सकता है बशर्ते वह इस्लाम में आस्था रखता हो। वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913 में यह बंधित है कि कोई भी व्यक्ति जो इस्लाम में आस्थावान हो अपनी संपत्ति का समर्पण कर सकता है अत: वाकिफ का इस्लाम धर्म के प्रति आस्था एवं विश्वास पर्याप्त है उसका मुस्लिम होना अनिवार्य नहीं
c.    वाकिफ को वक्फ सृजित करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए वक्फ में स्वामित्व का अंतर होता है अत: वक्फ करते समय वाकिफ को वक्फ की जाने वाली संपत्तियों का स्वामी होना चाहिए
d.    पर्दानशी महिला द्वारा वक्फ किया जा सकता है ऐसे में मुतवल्ली तथा हितग्राहियों को अलग से सिद्ध करना पड़ता है की महिला ने वक्फ करते समय अंतरण की प्रकृति को भली-भांति समझा है और वक्फ करने में उसका निर्णय स्वतंत्र रहा है
e.    वाकिफ की स्वतंत्र सहमति अनिवार्य है
f.     वाकिफ अपने जीवन काल में संपूर्ण संपत्ति का वक्फ कर सकता है परंतु वसीयती वक्फ के संबंध में वाकिफ एक तिहाई भाग से अधिक का वक्फ उत्तराधिकारियों की अनुमति के अभाव में नहीं कर सकता
3)    वक्फ की विषय वस्तु-  किसी भी संपत्ति का वक्फ किया जा सकता है| चल-अचल, मूर्त-अमूर्त संपत्ति का वक्फ किया जा सकता है| परंतु निम्न संपत्तियों का वक्फ नहीं किया जा सकता
a.    अदत्त मेहर
b.    सामान्य धन डिग्री के अंतर्गत कर्जदार ण वसूलने का अधिकार क्योकि डिग्री के धन को ऋणदाता वसूल कर भी सकता है और नहीं भी
c.    फ्लोपभोगी बंधक दार का अधिकार वक्फ नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह स्वामी नहीं है
d.    मूशा सम्पत्ति का वक्फ मूशा का वक्फ मान्य हैं चाहे मूशा विभाज्य हो या अविभाज्य बिना विभाजन के भी वक्फ मान्य होगा। परंतु मस्जिद और कब्रिस्तान के लिए मूशा सम्पत्ति का वक्फ नहीं किया जा सकता
4)    वक्फ का उद्देश्य- इस्लाम के विरुद्ध ना हो तथा धार्मिक पुण्यार्थ एवं परोपकारी हो
A)   अंशत: वैध तथा अंशत: वैध उदेश्य- अंशत: वैध तथा अंशत: वैध उद्देश्य वाले वक्फ मे वैध  भाग मान्य होगा और अवैध भाग शून्य हो जाएगा और उसका जो भाग शून्य होगा उसकी संपत्ति वाकिफ तथा उसके उत्तराधिकारियों को वापस चली जाएगी उदहारणार्थ 1/3 मस्जिद के लिए 2/3 मंदिर के लिए वक्फ किय, यहां 1/3 मान्य है 2/3 का वक्फ शून्य हैं परंतु यदि वैध तथा अवैध उद्देश्य वाले हिस्से निश्चित न हो तथा यह पता भी ना लगाया जा सके कि कितना भाग वैध उदेश्य के लिये है तथा कितना भाग अवैध उद्देश्य के निमित्त है तो पूरा का पूरा वैध मान लिया जाएगा जैसे ऊपर मंदिर एवं मस्जिद के हिस्से अलग न बताए गए हो, तो पूरा मस्जिद के लिए प्रयोग कर लेंगे उद्देश्य निश्चित होना चाहिए अगर वक्फ का उद्देश्य निश्चित नहीं होता है तो वक्फ शून्य माना जाता है
B)   निकटता/तत्सदृश का सिद्धांत डॉक्ट्रीन ऑफ साइप्रेस- तत्सदृश काब्दिक अर्थ हैं यथासंभव समीप इस सिद्धांत के अनुसार किसी न्यास में दिए गए उद्देश्य की पूर्ति हो जाने पर या किन्हीं कारणों से इसके उद्देश्य को क्रियान्वित न कर पाने की स्थिति में वक्फ समाप्त नहीं होता वरन इसके लाभांश को निर्देशित उद्देश्य से मिलते जुलते यथासंभव समीप के किसी उद्देश्य की पूर्ति में प्रयोग कर लिया जाता है उदाहरण के लिए- प्रौणो की शिक्षा के लिए वक्फ किया गया, उस क्षेत्र के सभी प्रौण शिक्षित हो गए, तो उसे उनको अधिक अच्छी शिक्षा देने, या बच्चों की शिक्षा में प्रयोग किया जा सकता है इसे ही निकटता का सिद्धांत कहते हैं
परंतु इस सिद्धांत को लागू करके किसी शून्य वक्फ को वैधानिकता प्रदान नही की जा सकती है उदहारण के लिए कोई वक्फ इस्लाम के विरुद्ध होने के कारण शून्य हो तो वैध नहीं बनाया जा सकता है, या कोई वक्फ अनिश्चितता के कारण शून्य हैं, या पारिवारिक वक्फ किसी त्रुटि के कारण असफल हो जाए तो इस सिद्धांत के आधार पर उन्हें वैध नहीं बनाया जा सकता
5)    वक्फ की औपचारिकताएं-
सुन्नि विधि में
a.    घोषणा- वक्फ की घोषणा मौखिक या लिखित कैसी भी हो सकती है। वक्फ शब्द का प्रयोग भी आवश्यक नहीं, केवल मंतव्य स्पष्ट होना चाहिए वक्फ करने का
b.    पंजीकरण भी आवश्यक नहीं- परंतु यदि ₹100 से अधिक की अचल संपत्ति का वक्फ है तो अगर उसे लिखित रूप में किया जाए तो रजिस्ट्रेशन आवश्यक है
c.    कब्जे का परिधान आवश्यक नहीं
d.    मुत्तवल्ली की नियुक्ति आवश्यक नहीं
शिया विधि में घोषणा, मुत्तवल्ली की नियुक्ति तथा कब्जे का परिदान तीनों आवश्यक है

6)    वक्फ के सृजन की विधियां
a.    गैर वसीयतीक्फ, संपत्ति के तत्काल समर्पण द्वारा, वाकिफ के जीवनकाल में ही प्रभावी हो जाता है तथा इसका प्रतिसंग्रह नहीं किया जा सकता
b.    वसीयती वक्फ-
                                                  i.    वसीयती वक्फ में यदि 1/3 से अधिक की संपत्ति को वक्फ करना चाहता है तो उत्तराधिकारियों की सहमति आवश्यक होगी
                                                 ii.    ऐसे वक्फ को मरने से पहले कभी भी प्रतिसंहरित किया जा सकता है
c.    स्मरणातीत उपयोग द्वारा वक्फ्।
7)    वक्फ के हितग्राही- इनको अलैहि भी कहते हैं
जिन के लाभार्थ वक्फ का सृजन किया जाता है वे वक्फ के हितग्राही कलाते हैं एक व्यक्ति, समूह, या सारी जनता वक्फ के हितग्राही हो सकते हैं परंतु मुस्लिम, गैर मुस्लिम, व्यस्क, अव्यस्क, महिला कोई भी वक्फ का हितग्राही हो सकता हैं बस शत्रु देश का नागरिक नहीं हो सकता
हितग्राही का अस्तित्व में होना भी अनिवार्य नहीं, भविष्य में उत्पन्न होने वाले व्यक्तियों के लाभार्थ वक्फो का सृजन किया जा सकता है

  वाकिफ द्वारा वक्फ की आय को अपने लिए सुरक्षित करना-
हनफी विधि - आय को अं; अथवा पूर्णता अपने लाभ के लिए सुरक्षित कर सकता है अर्थात हनफी विधि में स्वयं वाकिफ अपने द्वारा बनाए गए वक्फ का हितग्राही हो सकता है
एक हनफी मुस्लिम ने अपने मकान का वक्फ इस शर्त के साथ किया कि उसकी आमदनी  वाकिफ के भरण पोषण के लिए प्रयोग होती रहेगी तथा उसके मरने के बाद इसका उपयोग धर्मार्थ तथा परोपकारी कार्यों के लिए होगा ऐसी शर्त वै मानी गई
शिया विधि में वक्फ की आय को वाकिफ अपने लिए सुरक्षित नहीं कर सकता वे स्वयं हितग्राही नहीं हो सकता ऐसे में वक्फ शून्य माना जाएगा
Dr Nupur Goel
Assistant Professor
Shri ji institute of legal vocational education and research
( SILVER law collage )
Barkapur Bareilly
Email – nupuradv@gmail.com

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